गम का एहसास उस दिन ना हुआ कि उनकी आंखें चुप रही ,
इसक वो गहरा ढाई अक्षर का था यूहिन ,
बिकती पैमानों की महफ़िल में सिर्फ एक ही थी वो,
दिल के उजाले से बहुत अक्सर कहा करते हैं जो,
की जिंदगी के रुख में साथ बस यहीं था,
उनके आने का इंतज़ार कुछ इस तरह था,
जैसे दिल के सैलाब में उठती वो जो बात,
कहते थे वो रात की निशा में जज़्बात,
हमें उनके आने का इंतज़ार था, और उनको हमसे दूर जाने का एहसास था,
कहकर कुछ ना गई उन लहरों की तरह,
उठ गई वो सतरंगी चोला ओढ़ कर ज़रा,
गम का एहसास उस दिन हुआ कि उनकी आंखें कह ना गई कुछ,
क्या वो हकीकत थी या हसीं ख्वाब इतना कुछ?,
इसक वो गहरा था यहीं इस कदर,
क्यों राहगीर बन गए मुसाफ़िर दर बदर,
सरफ़रोशी इस आलम घर कर गई,
हाय वो यहीं क्यों चली गई,
बिकती पैमानों की महफ़िल में सिर्फ एक ही थी वो,
जो बिक ना सकी उसकी चाहत जो,
गम की गलियों में अक्सर वो रुक्सार हुआ करते हैं,
जो मरकर भी दुआओं में कुबूल हुआ करते हैं,
जैसे दिल के सैलाब में गहरी वो,
लेकर चली गई उनके आने की मुस्कुराहट को कैद करके जो।
माया