नई दिल्ली. कोरोनाकाल के बाद भारतीय परिवारों की बचत में लगातार गिरावट आ रही है. आलम ये है कि महज 3 साल के भीतर 9 लाख करोड़ रुपये की सेविंग खत्म हो गई. इसी दरम्यान भारतीय परिवारों पर कर्ज बढ़कर दोगुना हो चुका है, जिसमें बैंक और एनबीएफसी दोनों के ही आंकड़े चौंकाने वाले हैं. यह खुलासा सरकार की ओर से जारी आंकड़ों में हुआ है. हालांकि, इस दौरान लोगों ने शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड में अपना निवेश और बढ़ा दिया है.
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने मंगलवार को आंकड़े जारी कर बताया कि देश में परिवारों की शुद्ध बचत तीन वर्षों में नौ लाख करोड़ रुपये से अधिक घटकर वित्त वर्ष 2022-23 में 14.16 लाख करोड़ रुपये रह गई है. मंत्रालय की तरफ से जारी ताजा राष्ट्रीय खाता सांख्यिकी-2024 के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में परिवारों की शुद्ध बचत 23.29 लाख करोड़ रुपये पहुंच गई थी, लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट आ रही है.
5 साल में सबसे कम
मंत्रालय ने बताया कि वित्त वर्ष 2021-22 में परिवारों की शुद्ध बचत घटकर 17.12 लाख करोड़ रुपये रह गई. यह वित्त वर्ष 2022-23 में और भी कम होकर 14.16 लाख करोड़ रुपये पर आ गई जो पिछले पांच वर्षों का सबसे निचला स्तर है. इससे पहले शुद्ध घरेलू बचत का निचला स्तर वर्ष 2017-18 में 13.05 लाख करोड़ रुपये था. यह 2018-19 में बढ़कर 14.92 लाख करोड़ रुपये और 2019-20 में 15.49 लाख करोड़ रुपये हो गया था.
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2020-21 से लेकर 2022-23 के दौरान म्यूचुअल फंड में निवेश लगभग तीन गुना बढ़कर 1.79 लाख करोड़ रुपये हो गया जो 2020-21 में 64,084 करोड़ रुपये था. शेयरों और डिबेंचर में परिवारों का निवेश इस अवधि में 1.07 लाख करोड़ रुपये से लगभग दोगुना होकर 2022-23 में 2.06 लाख करोड़ रुपये हो गया है.
मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि परिवारों पर बैंक ऋण भी इन तीन वर्षों में दोगुना होकर 2022-23 में 11.88 लाख करोड़ रुपये हो गया है. यह 2020-21 में 6.05 लाख करोड़ रुपये और 2021-22 में 7.69 लाख करोड़ रुपये था. वित्तीय संस्थानों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की तरफ से परिवारों को दिया जाने वाला ऋण भी वित्त वर्ष 2020-21 में 93,723 करोड़ रुपये से चार गुना बढ़कर 2022-23 में 3.33 लाख करोड़ रुपये हो गया. वित्त वर्ष 2021-22 में यह 1.92 लाख करोड़ था.